सांकी
भर दिया सांकी, प्याला खुशी मिलाकर
घुंट घुंट लेलुं, हरेक घुंट बांटकर...
नशा युं हुआ, आसमां लगे तिनका..
जाम तेरा सांकी, एहेसास क्यूँ मनका...
सांकी पिलाये, दीदार ए पैमाना..
प्यासा दे दुवां, बन जाये अफसाना...
केहेदो झूट ही सही, यारों मुझे नाशीला...
मिलने आऊं सांकी, साबीत करनेके बहाने...
युं नन्हा ढुंडे माँ, कुछ ना आये रास,
खिंच लाये सांकी, बस तेरा ये एहेसास..
थक गये युं, दुनियाई काश्मकश से...
तरसे अब सांकी, तेरे शाम ए दीदार से…
- गिरीश घाटे